अमेरिकी सरकार को पूरा भरोसा है कि चीन कोरोना वायरस (Coronavirus) रिसर्च के लिए उसके सिस्टम की जासूसी कर रहा है. ट्रंप प्रशासन का कहना है कि उसके अस्पतालों, रिसर्च लैबों, फार्मा कंपनियों और हेल्थ केयर से जुड़ी कंपनियों पर चीन साइबर हमले कर रहा है, जिसकी तह तक पहुंचने के लिए अमेरिका कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता. अमेरिका में चीन के लिए जासूसी करने के संदेह में कई हाई-प्रोफाइल गिरफ्तारियां की गई हैं.
FBI ने पिछले सप्ताह दो गिरफ्तारियां की हैं. 13 मई को ओहियो से डॉ. क्विंग वांग को गिरफ्तार किया गया है. वांग क्लीवलैंड क्लिनिक के पूर्व कर्मचारी हैं. उन्हें 3.6 मिलियन डॉलर के संघीय अनुदान से जुड़ी धोखाधड़ी के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. अभियोजकों का कहना है कि वांग ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान से अनुदान स्वीकार किया और इसकी शर्तों का उल्लंघन किया.
वांग ने चीन की हुआझिंग युनिवर्सिटी के साथ अपनी संबद्धता का खुलासा नहीं किया. वह लाइफ साइंस और टेक्नोलॉजी के कॉलेज के डीन थे. वांग ने चीन के 1000 टेलेंट प्रोग्राम में हिस्सा लिया था. उन्हें चीन से 3 मिलियन डॉलर का अनुदान मिला था और उन्होंने ये बात अमेरिकी सरकार से छिपाई थी.
वांग एक अमेरिकी नागरिक है जो चीन में पैदा हुए. वह अनुवांशिकी और हृदय रोग के विशेषज्ञ हैं. वांग 1997 से क्लीवलैंड क्लिनिक से जुड़े थे और हाल ही में उन्हें निकाल दिया गया था. अधिकारियों ने गिरफ्तार करने से पहले वांग के ओहियो के घर की तलाशी ली थी. वैंग का मामला हार्वर्ड के प्रोफेसर चार्ल्स लिबर के मामले से काफी मिलता-जुलता है. 60 वर्षीय लिबर को जनवरी में गिरफ्तार किया गया था. लिबर ने चीन के साथ अपने संबंधों को छिपाया था. उन्होंने भी चीन के 1000 टेलेंट प्रोग्राम में हिस्सा लिया था.
एक और वैज्ञानिक को भी हाल ही में गिरफ्तार किया गया था. 63 वर्षीय इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग प्रोफेसर साइमन सौ-तोंग आंग. वह अर्कांसस-फेएटविले युनिवर्सिटी में एक शोधकर्ता भी हैं.
उन्हें 8 मई को वायर धोखाधड़ी के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. अधिकारियों का कहना है कि एंग ने नासा और विश्वविद्यालय दोनों को धोखा दिया है. एंग ने नासा के एक रिसर्च प्रोजेक्ट के लिए फंडिंग हासिल की, लेकिन उन्होंने चीनी यूनिवर्सिटी के साथ अपने जुड़ाव के बारे में नहीं बताया और न ही चीनी कंपनियों के साथ अपने संबंधों के बारे में जानकारी दी.
अमेरिका ने आरोप लगाया कि चीन अमेरिकी तकनीक को चुराने की कोशिश कर रहा है. इसमें सैन्य सामग्री से लेकर मेडिकल रिसर्च तक सब कुछ शामिल है. अमेरिका का ये डर निराधार नहीं है. कई सुरक्षा एजेंसियों ने सूचना दी है कि अमेरिकी सरकारी कर्मचारियों पर साइबर और मैलवेयर हमले के प्रयास बढ़ गए हैं.