नई दिल्ली: क्रिकेट ही नहीं लगभग हर खेल में कोई भी खिलाड़ी या टीम अपने घर में सबसे बेहतरीन प्रदर्शन करके दिखाते हैं. दर्शकों से लेकर मौसम और अन्य फैक्टर तक, सबकुछ उनका अपना जाना-पहचाना होता है. जिसका फायदा घरेलू माहौल में मिलने की बात विशेषज्ञ भी स्वीकारते हैं. टीम इंडिया की पहचान तो वैसे भी क्रिकेट जगत में 'घरेलू पिचों की शेर' के तौर पर ज्यादा रही है. लेकिन इस दशक में घरेलू पिचों पर भारतीय क्रिकेट टीम का जलवा और ज्यादा चढ़कर बोला है.
ये जलवा इस कदर चढ़ा है कि 2010 के दशक में टीम इंडिया को उसकी पिचों पर हराना बिल्कुल नामुमकिन सा ही रहा है. ऐसा जलवा न तो दक्षिण अफ्रीका ही अपने घर में दिखा पाई और न ही अपनी पिचों पर लगभग अजेय की हैसियत रखने वाली ऑस्ट्रेलिया ही ऐसा प्रभुत्व दिखा सकी. कुल मिलाकर कहा जाए तो इस दशक में घरेलू पिचों पर टीम इंडिया सबसे दिग्गज साबित हुई है.
18 में से जीती 16 सीरीज, हारी महज एक
टीम इंडिया ने 2010 के दशक यानी 1 जनवरी, 2010 से 31 दिसंबर 2019 तक अपनी पिचों पर 18 सीरीज खेली थीं. इनमें से भारत के खाते में 16 सीरीज जीत दर्ज की गई, जबकि उसे महज एक सीरीज में 2012-13 में इंग्लैंड से अपनी पिचों पर हार का सामना करना पड़ा. इस दशक में घरेलू पिचों पर उसे इकलौती ड्रॉ सीरीज 2010 में दक्षिण अफ्रीका के साथ खेलनी पड़ी थी, जिसमें दोनों टीमों ने 1-1 टेस्ट मैच जीता था. इस दशक में भारत के बाद अपनी पिचों पर दूसरे नंबर पर ऑस्ट्रेलियाई टीम का ही जलवा रहा था, जिसने 16 में से 10 सीरीज जीतीं और 4 में उसे हार का सामना करना पड़ा. इंग्लैंड ने इस दशक में 20 सीरीज में से 14 में जीत और 2 में हार हासिल कीं, जबकि घरेलू पिच पर दक्षिण अफ्रीका ने 17 सीरीज में 12 जीत और 3 हार का रिकॉर्ड अपने नाम किया.
टीम इंडिया रही 70+प्रतिशत जीत वाली इकलौती टीम
जीत के प्रतिशत के हिसाब से देखा जाए तो टीम इंडिया इस दशक में इकलौती ऐसी टीम रही, जिसने अपनी पिचों पर 70+ का औसत बनाया. टीम इंडिया ने अपने 74 प्रतिशत मैच जीते, जबकि ऑस्ट्रेलिया ने 67.27 प्रतिशत मैचों में जीत हासिल की. इंग्लैंड का औसत 61.19 प्रतिशत का तो दक्षिण अफ्रीका का 63.83 प्रतिशत जीत का रहा.
ऑस्ट्रेलियाई टीम के ऑलटाइम बेस्ट से मामूली अंतर से चूकी
हालांकि टीम इंडिया मामूली अंतर से ऑस्ट्रेलियाई टीम के किसी एक दशक में घरेलू पिचों पर सबसे अजेय प्रदर्शन के रिकॉर्ड से चूक गई. टीम इंडिया के 74 प्रतिशत जीत के औसत के मुकाबले ऑस्ट्रेलियाई टीम ने 2000 के दशक में अपनी पिचों पर 76.27 प्रतिशत जीत का औसत बनाया था. इस दौरान ऑस्ट्रेलियाई टीम ने 20 में से 17 सीरीज जीती थी, जबकि महज 1 में उसे हार मिली थी.
स्पिनर रहे टीम इंडिया की जीत का आधार
यदि टीम इंडिया की इस दशक में बल्ले से जीत का आधार विराट कोहली, चेतेश्वर पुजारा साबित हुए तो गेंदबाजी में स्पिन विभाग का असली जलवा रहा. आर अश्विन की अगुआई में रवींद्र जडेजा, प्रज्ञान ओझा आदि ने टीम इंडिया की जीत की नींव रखी. भारतीय स्पिनरों ने 50 टेस्ट में 598 विकेट हासिल किए, जबकि इस दौरान भारतीय तेज गेंदबाजों को 298 विकेट ही नसीब हुए.
अश्विन-जडेजा की जोड़ी का रहा जलवा
यदि सही मायने में देखा जाए तो टीम इंडिया की गेंदबाजी में 2010 का दशक रविचंद्रन अश्विन और रवींद्र जडेजा की जोड़ी का रहा. अश्विन ने भारतीय टीम के 50 में से 42 टेस्ट खेलकर 254 विकेट चटकाए, जबकि जडेजा ने 33 टेस्ट में 157 विकेट अपने नाम किए. इन दोनों ने जो 33 टेस्ट एकसाथ खेले, उनमें से 25 में टीम इंडिया ने जीत हासिल की, जबकि महज 1 टेस्ट में उसे हार का सामना करना पड़ा. इन दोनों के बाद सबसे ज्यादा 96 विकेट 28 टेस्ट मैच में तेज गेंदबाज उमेश यादव को मिले. स्पिनरों में अश्विन-जडेजा के अलावा प्रज्ञान ओझा ने 18 टेस्ट में 92 विकेट, जबकि हरभजन सिंह ने 10 टेस्ट में 38 विकेट चटकाए.
विदेश में भी किया था टीम इंडिया ने अच्छा प्रदर्शन
ऐसा नहीं है कि टीम इंडिया इस दशक में अपनी पिचों की ही शेर साबित हुई. भारतीय क्रिकेट टीम ने विदेश में भी कुछ बेहतरीन प्रदर्शन विराट कोहली की कप्तानी में करके दिखाए हैं. चाहे ऑस्ट्रेलियाई धरती पर पहली सीरीज जीत रही हो या दक्षिण अफ्रीका में पहली बार टेस्ट जीतने का कारनामा, टीम इंडिया बाहरी धरती पर भी अब कमतर साबित नहीं हो रही है.